धर्म-अध्यात्म

आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च के पथ पर चलकर ही मनुष्य सच्चा मनुष्य बन सकता है

देवास। आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के सेक्रेटरी आचार्य शांतव्रतानन्द अवधूत एवं भुक्तिप्रधान दीपसिंह तंवर ने बताया, कि बैतूल में 16 से 18 फरवरी तक आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय राज्य स्तरीय सेमिनार सम्पन्न हुआ।

इसमें देवास, इंदौर, उज्जैन, सीहोर, भोपाल रायसेन, होशंगाबाद आदि जिलों के साधकों, आचार्य मुक्तगुणानंद अवधूत, आचार्य सुभद्रानंद अवधूत, आचार्य धीरजानन्द अवधूत, आचार्य मन्द्रित ब्रह्मचारी,अवधूतिका आनन्द वैष्णवी आचार्य, अवधूतिका आनंद अनुरक्ति आचार्य,जगदीश मालवीय, हरीश भाटिया, बालकृष्ण माहेश्वरी, ममता माहेश्वरी, रेखा मालवीय आदि ने भाग लिया। सेमिनार के व्यवस्थापक आचार्य रागातीतानंद अवधूत ने बताया, कि शिवोपदेश विषय पर केन्द्रीय प्रशिक्षक आचार्य अवनिंद्रानंद अवधूत ने कहा, कि भगवान सदाशिव इस धरा पर आज से 7000 वर्ष पूर्व आए। उस समय आर्यों का आगमन चल रहा था। आर्य-अनार्य का संघर्ष का दौर था। उनके बीच व्याप्त विषमता को दूर कर एक सूत्र में बांधने के लिए भगवान शिव ने समाज को बहुत कुछ दिया। जैसे विवाह पद्धति, संगीत विद्या, ताण्डव नृत्य, स्वर विज्ञान आदि। लोगों को उन्होंने ज्ञान की शिक्षा दी। क्रोध से बचें, क्योंकि क्रोध शरीर को क्षतिग्रस्त कर देता है। मन को स्तंभित कर देता है। आत्मिक प्रगति के पथ में कांटें बिछा देता है। अतः भगवान शिव ने कहा- क्रोध एक महान शत्रु। मनुष्य लोभ वृत्ति के कारण बहुत सारा पाप कर्म कर डालता है। अतः उन्होंने स्पष्ट रूप में कहा- लोभः पापस्य हेतुभूतः। मनुष्य को सत्य का आश्रय लेना चाहिए लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए मिथ्याचारी बन जाता है। इसी कारण मनुष्य को सावधान करते हुए भगवान शिव ने कहा, मिथ्यावादी सदा दुःखी। भगवान शिव उपदेश देते हुए कहते हैं कि आत्मज्ञान ही सही ज्ञान है।

ज्ञान शब्द प्राचीन संस्कृत के जिज्ञा धातु से बना हुआ है। लौकिक विचार से जिन सभी वस्तुओं को ज्ञान कहकर पुकारते हैं, वे ज्ञान नहीं, मात्र ज्ञान का अवभास है। इसको साधारणत- विद्या या वेदन किया कहकर पुकारा जाता है, यह ज्ञान नहीं है और इसके लिए विद धातु का व्यवहार की संगत है।विद्या के दो प्रकार है- परा विद्या और अपरा विद्या। परा विद्या जो मनुष्य को आत्म मोक्षार्थ के पथ पर ले जाए और मोक्ष के द्वार तक पहुंचा दे और अपरा विद्या जागतिक कर्म के माध्यम से जगत हिताय के काम में आता है। इसलिए भगवान शिव ने कहा है आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च।

अपरा विद्या की चर्चा जरूरी है। इसके अंतर्गत इतिहास, भूगोल, राजनीति, मनोविज्ञान, मानविकी विद्या, साहित्य, भौतिक विज्ञान आते हैं। मनुष्य इसका सदुपयोग कर सच्चा मनुष्य बन सकेगा। उक्त जानकारी संस्था के हेमेन्द्र निगम ने दी।

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