धर्म-अध्यात्म

सांसें चल रही है, तब तक ही देह की पवित्रता है

  • सिद्धियां जीते जी ही प्राप्त की जा सकती है मरने के बाद नहीं- साहेब मंगल नाम

देवास। सुर गुरु (श्वास) के निकलने के बाद निर्जीव देह में दुर्गंध आने लगती है। जब तक सांसे चल रही हैं, तब तक ही देह की पवित्रता है। जितनी भी सिद्धियां हैं, वह स्वर से ही प्राप्त हुई है। मरने के बाद कोई सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती। हाथ नहीं है, पाव नहीं है, आंखें भी नहीं है तो चलेगा, लेकिन सुर गुरु का देह में होना अति आवश्यक है, क्योंकि सुर गुरु के बिना सब व्यर्थ है। नाम बिना बे-काम है छप्पन करोड़ विलास, क्या इंद्रासन बैठना, क्या बैकुंठ निवास। नाक में सांस नहीं है तो जला देंगे या गाड़ देंगे। सुर गुरु के बिना 56 करोड़ विलास, इंद्रासन पर बैठना और बैकुंठ निवास भी व्यर्थ है। यह विचार मंगल मार्ग टेकरी स्थित सदगुरु कबीर आश्रम सर्वहारा प्रार्थना स्थली पर आश्रम प्रमुख साहेब मंगल नाम ने संध्या आरती के दौरान गुरु शिष्य संवाद परिचर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि पवन के पांचों तत्व मेरी आहुति और इक्कीस हजार छह सौ आहुतियों से सुरगुरु और उनके संवाद को प्राप्त किया जा सकता है, जिससे जीव इस देह रूपी वन से मुक्त हो जाता है। सुरगुरु ही हमारा ठिकाना है। लोम, विलोम, चांद, सूरज, गंगा, जमुना, सरस्वती आदि नाम देकर ही संत सुरगुरु की उपासना कर संसार में पूजित हुए हैं, प्रसिद्ध हुए हैं।

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