गीता पढ़कर कोई कृष्ण नहीं बन सकता, ना किताब पढकर कोई कबीर- सद्गुरु मंगलनाम साहेब
देवास। गीता पढ़कर कोई कृष्ण नहीं बन सकता और ना कोई किताब पढ़कर कबीर बन सकता है, लेकिन हम उनके आदर्शों पर चलकर संसार में दया, प्रेम और विश्वास कायम कर सकते हैं। जिसके मन में दया, प्रेम और विश्वास नहीं है, वह मानव पशु के समान होता है। चंद्रमा से 16 साल पहले अभिमन्यु को भगवान श्रीकृष्णा मांगकर लाए थे। उसके बाद अभिमन्यु मरा तो 16 तिथि जो चंद्रमा की है वही 16 महारथी है। वही महारथी बनकर संसार को बताया गया, चरित्र को समझाया गया। 16 महारथी 16 तिथि है। 16 तिथि में ही हर आदमी का जीवन बीत रहा है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सद्गुरु प्रार्थना स्थली सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरुवाणी पाठ, चौका आरती के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि राजा परीक्षित को कह दिया था कि तू 7 दिन में मर जाएगा, लेकिन कोई कभी भी मरे वह 7 दिन में ही मारेगा, 7 दिन से आठवां दिन है ही कहां। वार तो एक है। उसके कदम सात है। रविवार, सोमवार मंगलवार सहित सात वार में ही सब जन्म लेंगे और सात वार में ही सब मरेंगे। यह तो प्रकृति का सौहार्द है। प्रकृति का सौहार्द जो हो रहा है वह हो रहा है। आज गेहूं अंकुरण हो रहा है, कल भी हो रहा था। एक मां के पेट में बच्चा अंकुरित होता है, हो रहा है।
उन्होंने कहा, कि अंकुरण से क्या होता है कि एक दाना हम खेत में डालते हैं, तो वह दाना सड़कर फटकर अंकुरित होकर उसमें से हजार दाने आते हैं। एक ने अपने जीवन का बलिदान दिया, लेकिन उसने हजार होकर जन्म लिया। इसलिए जीवन में जब भी दुख आए तो भागना नहीं उसका सामना करना चाहिए, क्योंकि दुख तो हमारा अंकुरण करने वाला होता है। वह हमारा अंश है। दुख जब आता है तभी तो हम अंकुरित होंगे। अगर जीवन में सुख ही सुख है तो अंकुरण नहीं होगा। दुख से अनंत जीवन का अंकुरित होना संभव है।
इस अवसर पर साध संगत द्वारा सद्गुरु मंगलम साहेब की आरती की गई। कार्यक्रम पश्चात महाप्रसादी का वितरण किया गया। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।